जो देश अपनी मुद्रा का मूल्य, क्रय-शक्ति (विनिमय- माध्यम) को अपने श्रम संसाधन की उत्पादन क्षमता के आधार पर बनाए रखता है । वही स्वतंत्र देश कहलाया है अर्थात अपनी मुद्रा स्वयं नियंत्रित करना है । इस पर यह कहावत बिलकुल ठीक बैठती है । जिसका सिक्का वही राजा ।जब तक मुद्रा की क्रय-शक्ति (परचेजिंग पावर) ठीक रहती है । तब तक सब ठीक है कहीं कुछ गड़बड़ नहीं होता बस क्रय- शक्ति की मात्रा में कमी हो सकती है । लेकिन अत्यधिक मात्रा की कमी होना ठीक नहीं है । अगर ऐसा होता है तो वहां ज्ञान की कमी और संसाधन, श्रम, वस्तुएं नष्ट होने लगती हैं यानि अच्छाई से बुराई की और बढ़ना ही ज्ञान का घटना है । यह एक वाइरस की तरह फैलता है । यही सृजन - संघार है । इसका मात्र एक इलाज है वाइरस से परहेज करना और ज्ञान की मात्रा में बृद्धि करना ।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदेशों को हृदय में संजोये रखे और उसका पालन करे।
- भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
- देश की रक्षा करे।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।
एक मुहीम छिड़ चुकी है आपके भारत में भारतीय रुपये को ले कर जिसका बीड़ा उठाया है एक संगठन ने जिसका नाम है '' आज़ाद भारत'' और सबसे मजे की बात तो ये है की इसमें भारी संख्या में लोग सिरकत कर रहे हैं इन लोगों का जो मुद्दा है नेताजी सुभाष चंद्र बोस के फार्मूले पर आधारित है भारत में उसे कोई काटने वाला नहीं है उनका कहना है की दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला कोई भी प्रधान मंत्री इस महा महंगाई को तब तक खत्म नहीं कर सकता जब तक अपना भारतीय रूपया अपने देश में नहीं आएगा ! जब तक आर. बी. आई. (ब्रिटिश) के इस रुपये का पूरी तरह से बहिष्कार नहीं हो जाता !
Hit right at the right time
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ सौहार्दपूर्ण सलूक न करना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया जो यथोचित आज देखने को मिल रहा है इससे ये पता चलता है की आज़ादी के बाद यानि भारत की आर्थिक गुलामी के साथ ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एक ऐसे निदानकारी व्यक्तित्व हुए जो देश की संकटकालीन परिस्थिति का मूल्यांकन पहले ही कर लेते थे। क्या कभी किसी ने इस पर विचार किया ? उन्होंने पूर्ण आज़ादी के लिए आज़ाद हिन्द बैंक करेंसी का सूत्रपात किया ऐसे में देश के हर नागरिक को चाहिए था उनके नैषार्गिक न्याय के सिद्धांतों को अपना कर देश को आर्थिक गुलामी के बंधन से मुक्त कराकर स्वस्थ भारत बनाना। गलती करना बुरी बात नहीं लेकिन उस गलती से सीख न लेना बहुत बुरा होता है। क्या हुआ आज देर ही सही उन्होंने जघन्य गुलामी के विकल्प से रूबरू करवाया है तो इस बार हमें चूकना नहीं चाहिए ब्रिटिश इंडिया गवर्मेंट को सबक सिखाने का इससे अच्छा मौका हो ही नहीं सकता।
Hit right at the right time
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ सौहार्दपूर्ण सलूक न करना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया जो यथोचित आज देखने को मिल रहा है इससे ये पता चलता है की आज़ादी के बाद यानि भारत की आर्थिक गुलामी के साथ ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस एक ऐसे निदानकारी व्यक्तित्व हुए जो देश की संकटकालीन परिस्थिति का मूल्यांकन पहले ही कर लेते थे। क्या कभी किसी ने इस पर विचार किया ? उन्होंने पूर्ण आज़ादी के लिए आज़ाद हिन्द बैंक करेंसी का सूत्रपात किया ऐसे में देश के हर नागरिक को चाहिए था उनके नैषार्गिक न्याय के सिद्धांतों को अपना कर देश को आर्थिक गुलामी के बंधन से मुक्त कराकर स्वस्थ भारत बनाना। गलती करना बुरी बात नहीं लेकिन उस गलती से सीख न लेना बहुत बुरा होता है। क्या हुआ आज देर ही सही उन्होंने जघन्य गुलामी के विकल्प से रूबरू करवाया है तो इस बार हमें चूकना नहीं चाहिए ब्रिटिश इंडिया गवर्मेंट को सबक सिखाने का इससे अच्छा मौका हो ही नहीं सकता।
A glimpse of applications submitted under the Right to Information Act 2005
रिजर्व बैंक आफ इंडिया एक्ट 1934 की धारा 22 एवं धरा 25 के तहत जारी नोट पेपर करेंसी जो बगैर सिक्के के जारी है जिसकी छाया प्रति उपलब्ध नहीं है एवं रूपया का संचालक नियंत्रक केंद्र सरकार द्वारा प्रत्याभूत गवर्नर का वचन रूपया का मूल्य निर्धारित करता ब्रिटेन डॉलर है जिस करेंसी का मूल्य दिनों- दिन घटती जा रही है का बहिष्कार एवं आज़ाद हिन्द बैंक करेंसी जो सम्राट भारत की करेंसी है से लेन- देन करना कराना संप्रभुता की रक्षा सुरक्षा आर्थिक आज़ादी है। तथा विधि का उलंघन करने वालों की गिरफ़्तारी करना कराना आपका मौलिक कर्तव्य एवं विधिक वाध्यता है।What happened to Azad Hind Bank? Where is that money?
Netaji Subhas Chandra Bose established the Bank of Independence or Azad Hind Bank in 1944 in Rangoon, Burma to manage funds donated by the Indian community across the world for the Liberation of India.
AZAD HIND BANK IS RECOGNIZED BY NINE COUNTRIES
जब सुभाष बाबू ने नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। सारा देश हैरान रह गया। बोस जी को समझते हुए कहा गया। ये क्या किया तुमने, तुम लाखों भारतीयों के सरताज बन सकते थे ? तब सुभाष बाबू ने कहा ''मैं लोगों पर नहीं उनके मनो पर राज करना चाहता हूँ। उनका हृदय सम्राट बनना चाहता हूँ। '' उनकी नीतियों का लक्ष्य है भारत को संयुक्त राष्ट्र बनाना अर्थात आज़ाद भारत बनाना ब्रिटिश इंडिया गवर्मेंट का बहिष्कार प्रकृतिदत्त आवेग, संवेग और उसकी सक्रियता की स्वछँदता का स्वावलम्बन ''आज़ाद भारत'' जो अकृत्रिम न्याय का सिद्धांत है। आज़ाद भारत का अन्तर्निहित वरणाधिकार आज़ाद हिन्द बैंक करेंसी जिसे नौ देशों की मान्यता प्राप्त है उनके ध्वनिमत से विश्वासमत लाना ही मात्र हमारा लक्ष्य नहीं है बल्कि निर्विराम आज़ाद भारत का सम्पूर्ण भारत को आज़ाद हिन्द बैंक करेंसी से लेन-देन करना और कराना है।Bewildered British India Government
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपने तिलिस्म में सबको जकड रखा है। देश ही नहीं पूरी दुनियां में उन्होंने अपने प्रभावोत्पादकता से लोगों को यह सन्देश देने की कोशिश की है कि अब वह दिन दूर नहीं जब भारत को अखंड भारत की सर्वोच्चता का स्थान प्राप्त हो जायेगा। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जहाँ भी गए वहां अपने संवाद व व्यक्तित्व से लोगों को इतना हर्षोन्मत्त कर दिए कि उनके विरोधी भी उनकी तारीफ किये बिना नहीं रह पाये उन्होंने हमको अनगिनत रूपों में वह सब कुछ दिया जिसकी हमें जरुरत थी। इसमें कोई सक नहीं की उनके भगवन रूप से दुनिया का कोई भी प्राणी प्रभावित न हुआ हो यही कारण है की आज भी उनका नाम स्मरण करने मात्र से रौंगटे खड़े हो जाते हैं। एक और सच- उनके खिलाफ षड़यंत्र रचने वालों की अब तक स्वाभाविक मौत नहीं हुई है। अपने कार्य शैली से भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अपने शख़्सियत का लोहा मनवाने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के इस आज़ाद हिन्द के फार्मूले ने ब्रिटेन को ऐसी पटखनी दी है की उन्हें यह तक नहीं सूझ रहा की आज़ाद हिन्द बैंक से लेन - देन किया तो फसेंगे और नहीं किया तो रुपये का विधिक प्रारूप कहाँ से लाएंगे (Bewildered British India Government) ब्रिटिश इंडिया गवर्मेंट जहाँ एक तरफ अपने झूठे अस्तित्व को कायम रखने के लिए महगाई- महगाई कहते हुए छटपटा रहा है, वहीँ भारत की न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका, निर्वाचन आयोग ये सभी निर्णय लेने में असमर्थता व्यक्त कर रहे हैं। उसके बाद भी आज़ाद भारत के क्रांतिकारियों की सेहत पर कोई विपरित असर नहीं पड़ रहा है उल्टे वे अपनी आज़ाद हिन्द बैंक करेंसी ले कर और उत्साहित होते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं। आज दुनिया की निगाहें आज़ाद भारत पर है जो यह देख कर हैरान हैं ? कोई तो भारत का सम्राट है जिसकी वजह से इतना बड़ा खेल हो रहा है ? देश की सूरत बहुत जल्द बदलेगी !
हमारे भारतीय एक रुपये की खरीदने की छमता (PURCHASEING POWER) लगभग 972 मिलीग्राम सोने की वैल्यू के बराबर है। आप सभी लोग इस ब्रिटिश इंडिया गवर्मेंट के इस रुपये का तत्काल बहिष्कार करें और आज़ाद हिन्द सरकार (NATIONAL BANK OF AZAD HIND LIMITED) जिसका गठन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 1944 में कियाहै On 5th April 1944, Netaji Subhash Chandra Boss Opend the National Bank Of Azad Hind at Rangoon. It was a commercial organization, not a state enterprises. जिसे 9 देशों कि मान्यता भी दिलवाई कि हमारा भारत देश आर्थिक रूप से आज़ाद हो सके और हमारा भारत खुशहाल हो सके सबसे मजे की बात तो ये है की हमारे इस रुपये की PURCHASEING POWER 972 मिलीग्राम गोल्ड है और ये जो ब्रिटिश इंडिया गवर्मेंट की रूपया है इसकी PURCHASING POWER क्या है ? क्या आप बता सकते हैं ? अगर आपको पता है तो हमें भी बताएं वरना हम सब के सब अपराधी हैं वो चाहे नेता हो चाहे मंत्री हो चाहे व्यापारी वो चाहे आम आदमी हो ये सभी के सभी अपराधी हैं इन्हे रंगे हांथों से पकड़ लिया गया है औरजो इसे भारतीय रूपया कहेगा उसे इसका मानक देना पड़ेगा I हमारे आज़ाद भारत के सभी नौजवान अपने अपने जिलों से विधि में गतिशील हैं । पत्र के माध्यम से शासन, प्रशासन और न्यायपालिका इन सभी से ये पूछा जा रहा है हमारी भारतीय रूपया क्या है और उसका मानक क्या है । अगर ये हमारी भारतीय रुपये का विधिक प्रारूप देने में असमर्थ हैं तो तत्काल कुर्सी खाली करें और आत्मसमर्पण करें वार्ना इसके जिम्मेदार शासन, प्रशासन और न्यायपालिका ये सभी होंगे और इसका मतलब है भारत में रुल आफ लॉ का शासन ख़त्म हो गया और सात में ये भी साबित हो गया की इस देश का शासक कोई और है जो हमें आर्थिक गुलाम बना रखा है ।
बाबा जयगुरुदेव और नेता जी का भारत से प्रेम - बाबा जी के शब्दों में -
''देश भक्ति को पहला निशाना बनाओ । यह तुम्हारी भूमि है और देश की तमाम चीजों की रक्षा करनी होगी । देशभक्ति के बाद मानव भक्ति, मानव भक्ति के बाद महात्मा की भक्ति, महात्माओं की भक्ति के बाद आत्मा की भक्ति, आत्मा की भक्ति के बाद परमात्मा की भक्ति करो । ''
भारत और भारतीय रूपया
OUR FREEDOM IS NOW CLOSER TO THE DAY IS NOT FAR OFF - यदि भारत के जिम्मेदार लोगों को आर्थिक संकट (महंगाई) का निदान पाने की सच्ची चिंता हो तो सबसे पहले भारतीय एक रुपये का महत्त्व समझना पड़ेगा । सन 1947 से ले कर अब तक जितनी सरकारें आईं और किसके शासन काल में हमारे रुपये का किस वर्ष कितना अवमूल्यन हुआ इसकी पूरा व्योरा जनता के बीच रखा जाये और इसका गणित किया जाये तो हमें स्वतः आभाष हो जायेगा की गड़बड़ी कहाँ से है और इसकी नव्ज़ क्या है ।
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